उत्तराखण्ड के कुमाऊं मंडल में होली की नियत तिथि से काफी पहले (बसंत पंचमी से) ही होली की मस्ती और रंग छाने लगते हैं. इस रंग में सिर्फ अबीर गुलाल का टीका ही नहीं होता बल्कि बैठकी होली और खड़ी होली गायन की शास्त्रीय परंपरा भी शामिल होती है. बरसाने की होली के बाद अपनी सांस्कृतिक विशेषता के लिए कुमाऊंनी होली को याद किया जाता है. फूलों के रंगों और संगीत की तानों का ये अनोखा संगम देखने लायक होता है. शाम ढलते ही कुमाऊं के घर घर में बैठक होली की सुरीली महफिलें जमने लगती है. बैठक होली घर की बैठक में राग रागनियों के इर्द गिर्द हारमोनियम तबले पर गाई जाती है. “…..रंग डारी दियो हो अलबेलिन में… ……गए रामाचंद्रन रंग लेने को गए…. ……गए लछमन रंग लेने को गए…… ……रंग डारी दियो हो सीतादेहिमें…. ……रंग डारी दियो हो बहुरानिन में….” यहां की बैठ होली में नजीर जैसे मशहूर उर्दू शायरों का कलाम भी प्रमुखता से देखने को मिलता है. “….जब फागुन रंग झमकते हों…. …..तब देख बहारें होली की….. …..घुंघरू के तार खनकते हों…. …..तब देख बहारें होली की……” बैठकी होली में जब रंग छाने लगता है तो बारी बारी से हर कोई छोड़ी गई तान उठाता है और अगर साथ में भांग का रस भी छाया तो ये सिलसिला कभी कभी आधी रात तक तो कभी सुबह की पहली किरण फूटने तक चलता रहता है. होली की ये रिवायत महज़ महफिल नहीं है बल्कि एक संस्कार भी है. ये भी कम दिलचस्प नहीं कि जब होली की ये बैठकें खत्म होती हैं- आर्शीवाद के साथ. और आखिर में गायी जाती है ये ठुमरी….. “मुबारक हो मंजरी फूलों भरी……ऐसी होली खेले जनाब अली….. ” बैठकी होली की पुरूष महफिलों में जहां ठुमरी और खमाज गाये जाते हैं वहीं अलग से महिलाओं की महफिलें भी जमती हैं. इनमें उनका नृत्य संगीत तो होता ही है, वे स्वांग भी रचती हैं और हास्य की फुहारों, हंसी के ठहाकों और सुर लहरियों के साथ संस्कृति की इस विशिष्टता में नए रोचक और दिलकश रंग भरे जाते हैं. इनके ज्यादातर गीत देवर भाभी के हंसी मज़ाक से जुड़े रहते हैं जैसे… फागुन में बुढवा देवर लागे……. होली गाने की ये परंपरा सिर्फ कुमाऊं अंचल में ही देखने को मिलती है. इसकी शुरूआत यहां कब और कैसे हुई इसका कोई ऐतिहासिक या लिखित लेखाजोखा नहीं है. कुमाऊं के प्रसिद्द जनकवि गिरीश गिर्दा ने बैठ होली के सामाजिक शास्त्रीय संदर्भों और इस पर इस्लामी संस्कृति और उर्दू के असर के बारे में गहराई से अध्ययन किया है. वो कहते हैं कि “यहां की होली में अवध से लेकर दरभंगा तक की छाप है. राजे-रजवाड़ों का संदर्भ देखें तो जो राजकुमारियां यहां ब्याह कर आईं वे अपने साथ वहां के रीति रिवाज भी साथ लाईं. ये परंपरा वहां भले ही खत्म हो गई हो लेकिन यहां आज भी कायम हैं. यहां की बैठकी होली में तो आज़ादी के आंदोलन से लेकर उत्तराखंड आंदोलन तक के संदर्भ भरे पड़े हैं .”
uttarakhandcalchuer ,,,, रानीखेत. व्यापक रूप से ‘रानी के मैदान’ के रूप में जाना जाने वाला रानीखेत, अल्मोड़ा जिले का एक सुंदर हिल स्टेशन है। लोककथाओं के अनुसार, पद्मिनी, कुमाऊं क्षेत्र की सुंदर रानी रानीखेत आयीं थीं और इस जगह की खूबसूरती की कायल हो गईं। इसलिए, उनके पति राजा सुखहरदेव ने इस जगह पर एक महल का निर्माण कराया और इसे ‘रानीखेत’ का नाम दिया। हालांकि इस महल के लिए कोई पुरातात्विक साक्ष्य नहीं है, रानीखेत के हर नुक्कड़ और कोने में कहानी अभी भी जिंदा है।.,,,,ब्रिटिश ने 1869 में इस जगह को फिर से खोजा और इसे अपने ग्रीष्मकालीन निवास के रूप में तब्दील कर दिया। उन्होंने यहां ब्रिटिश कुमाऊं रेजिमेंट के मुख्यालय की स्थापना की। वर्तमान में, औपनिवेशिक विरासत को रखते हुए, रानीखेत भारतीय सेना के प्रसिद्ध कुमाऊं रेजीमेंट के मुख्यालय के रूप में कार्य करता है। यह अद्भुत स्थान अपने हरे भरे जंगल और घास के मैदान के लिए एक बड़े पैमाने पर पर्यटनों का अंतर्वाह करता है। आकर्षक हिमालय की बर्फ से ढकी पर्वतमालाओं से घिरा हुआ, यह हिल स्टेशन समुद्र स्तर से 1869 मीटर की ऊंचाई पर कुमाऊं की ऊपरी पहाड़ियों पर बसा है। नैनीताल से 60 किमी की दूरी पर और अल्मोड़ा शहर से 50 किमी की दूरी पर स्थित, रानीखेत हरे भरे देवदार, ओक और देवदार के जंगलों के बीच में विश्राम करने का अवसर देता है। यात्री तेंदुआ, काकड़, सांभर, तेंदुआ बिल्ली, पहाड़ी बकरी, भारतीय खरगोश, लाल मुख वाला बंदर, पाइन नेवला, सियार, लाल लोमड़ी, लंगूर और साही जैसे जानवरों की विभिन्न प्रजातियों को जंगलों में देख सकते हैं। इसके अलावा, मंदिर, ट्रैकिंग और पर्यटन स्थल सहित रानीखेत में कई पर्यटक आकर्षण हैं। झूला देवी मंदिर और बिनसर महादेव, दोनों रानीखेत के सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक हैं। झूला देवी मंदिर का निर्माण 8वीं सदी में किया गया था। यह मंदिर हिंदू देवी दुर्गा को समर्पित है और कई तीर्थयात्री देवी की प्रार्थना के लिए यहाँ आते हैं। रानीखेत से 15 किमी की दूरी पर स्थित, बिनसर महादेव, हिंदू भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर देवदार के जंगल से घिरा हुआ है और यहां एक प्राकृतिक जल झरना है। कुमाऊं रेजिमेंटल सेंटर संग्रहालय और स्मारक एक और अच्छी तरह से जाना जाने वाला पर्यटकों का आकर्षण है। यह रानीखेत के सैनिकों द्वारा दिखायी गई बहादुरी और बलिदान को दर्शाता है। 1978 में, कुमाऊं क्षेत्र की विरासत की रक्षा के लिए एक संग्रहालय भी बनवाया गया था। यहाँ उन सैनिकों के सम्मान में, जिन्होंने देश के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया, परेड का आयोजन किया जाता है। मझखली रानीखेत-अल्मोड़ा मार्ग पर स्थित एक और लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यात्री इस जगह से सोन्या चोटियों के लुभावने दृश्यों का आनंद ले सकते हैं। पहाड़ी इलाकों, हरी-भरी घाटियां और शांत जलवायु से समृद्ध, छुट्टियां मनाने वालों के लिए यह एक आदर्श स्थान है। एक अन्य जगह उपट है, जो गोल्फ़ खेलने वालों के लिए स्वर्ग है। 9 गड्ढों वाला गोल्फ कोर्स वर्तमान में देश में सबसे अच्छा गोल्फ कोर्स में गिना जाता है। यह जगह महान हिमालय के करामाती चोटियों के मंत्रमुग्ध कर देने वाले दृश्य को प्रस्तुत करता है। चौबटिया स्वादिष्ट सेब, आड़ू, प्लम और खुबानी के हरे भरे बागों के लिए प्रसिद्ध है। हरे भरे बागों के अलावा, यह जगह एक लोकप्रिय पिकनिक स्पॉट है, जो नंदा देवी, नीलकंठ, नंदाघुंटी और त्रिशूल के रूप में चोटियों की सुंदर दृश्यों को समेटे हुए है। रानीखेत घूमने की योजना बनाने वाले यात्रियों को रानी झील घूमने का सुझाव दिया जा सकता है, जो कि एक बड़ी कृत्रिम झील है, जिसका विकास छावनी बोर्ड द्वारा वर्षा जल संग्रहण के प्रयोजन के लिए किया गया था। यह केन्द्रीय विद्यालय और कनोसा कॉन्वेंट स्कूल रानीखेत की दो प्राकृतिक लकीरों के बीच विकसित की गई है। समुद्र की सतह से 7500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है, लोग झील में नौका विहार का आनंद ले सकते हैं। पर्यटक सदर बाजार का लुत्फ उठा सकते हैं, जो रानीखेत में खरीददारी का प्रमुख केंद्र है। बाजार क्षेत्र में कई रेस्तरां और होटल हैं। यहां आने वाले लोग संस्कृति से जुड़ी वस्तुओं और विशिष्ट रूप से कढ़ाई वाले कपड़ों की खरीदारी कर सकते हैं। मॉल एक अन्य लोकप्रिय और कम भीड़ वाला बाजार है, जहां यात्री अद्वितीय ट्वीड शॉल, ऊनी शर्ट, जैकेट और कुर्ते खरीद सकते हैं। हस्तनिर्मित ऊनी उत्पाद भी उचित मूल्यों पर बाजार में उपलब्ध हैं। चौखुटिया एक और विख्यात पर्यटन स्थल है, जो रानीखेत से 54 किमी की दूरी पर स्थित है। नदी रामगंगा के शांत किनारे पर स्थित है, इस जगह का नाम एक कुमाऊंनी शब्द ‘चौ-खुट’ से व्युत्पन्नन हुआ है, जिसका मतलब चार फुट है। इस जगह के लिये चार फुट को चार मार्गों से संदर्भित किया जाता है। पहला रास्ता रामनगर को जाता है, दूसरा कर्ण प्रयाग, तीसरा रानीखेत और चौथा तड़कताल को जाता है। इस चौथे रास्ते से खीरा नामक जगह पर भी पहुंचा जा सकता है। इसलिए, यह जगह पूरे क्षेत्र के लिए आसान सुगम रास्ते प्रदान करती है। माउंटेन बाइकिंग और ट्रैकिंग सबसे लोकप्रिय साहसिक खेल हैं, जिनका रानीखेत में आनंद ले सकते हैं। रानीखेत के अन्य आकर्षण द्वारहाट, भालू बांध, ताड़ीखेत, कुमाऊं रेजीमेंट गोल्फ कोर्स, छावनी आशियाना पार्क, सनसेट प्वाइंट और खूंट हैं। यहां सीताखेत, जौरासी और खैराना भी घूमने लायक स्थान हैं।