पर्वतीय अंचल में पाए जाने वाले बहुउपयोगी पौधों में भीमल का नाम सबसे पहले आता है। यह पहाड़ों में खेतों के किनारे पर्याप्त संख्या में मिलता है। स्थानीय लोग भीमल को भीकू, भिमू, भियुल नाम से भी जानते हैं। इस पेड़ के हर हिस्से का उपयोग होता है। भीमल का बॉटनिकल नाम ग्रेवीया अपोजीटीफोलिया है। इसे वंडर ट्री भी कहते हैं। पेड़ की ऊंचाई 9 से 12 मीटर तक होती है।
हिमालयी क्षेत्र में 2000 मीटर की ऊंचाई तक पाए जाने वाले भीमल के पौधों की संख्या कम हो रही है। पहले इन पेड़ों को पशुओं के चारे के लिए ही लगाया जाता था। इसकी सदाबहार पत्तियों हर सीजन में जानवरों का चारा मिलता है। पहाड़ में पशुपालन घटने से लोग भीमल के पेड़ों का महत्व भी भूलने लगे हैं।
आयुर्वेदाचार्यों ने भीमल पर बड़ा शोध किया है। आयुष दर्पण पत्रिका ने बाकायदा भीमल के हर हिस्से की उपयोगिता पर अध्ययन किया और इसकी जानकारी आम लोगों को देने की कोशिश की। आयुर्वेद में एमडी डॉ. नवीन जोशी ने बताया कि भीमल दुधारू जानवरों के लिए सबसे भरोसेमंद चारा है। भीमल की सूखी और बारीक टहनियां चूल्हे की आग जलाने के काम में लाई जाती है। यह चीड़ के छिलके की तरह ज्वलनशील होते हैं। डॉ. जोशी बताते हैं कि भीमल की छाल को उबालकर गोमूत्र के साथ मिलाने से सूजन और दर्द वाली जगह पर सेंकने से तत्काल आराम मिलता है। भीमल की पत्तियां तो चारे के उपयोग में आती हैं, लेकिन उसकी पतली टहनियों से मजबूत रेशा निकलता है। भीमल से तैयार होने वाली रस्सी नमीरोधक होती है। इसकी छाल को कूटकर बालों को धोने वाला प्राकृतिक शैंपू बनाया जाता है। शिकाकाई में तो भीमल का मिश्रण होने लगा है। डॉ. जोशी कहते हैं कि भीमल का पेड़ हर प्रकार से उपयोगी है। अब राज्य सरकार ने इसके संरक्षण और प्रोत्साहन की योजना बनाई है, यदि लोग इस दिशा में काम करें तो यह वास्तव में आजीविका का नया जरिया बन सकता है।
भीमल के पेड़ों की संख्या घटना चिंताजनक
नगर के आसपास पहले बड़ी संख्या में भीमल के पेड़ थे। शहरीकरण के कारण जमीन बिकी और भीमल के पेड़ नष्ट कर दिए गए। अब नगरीय क्षेत्र में भीमल के पेड़ों की संख्या बहुत कम हो गई है। यह गंभीर चिंता का विषय है। अलबत्ता ग्रामीण अंचलों में भीमल के पेड़ मिलते हैं। लोग इनके व्यापक उपयोग की जानकारी नहीं रखते। इसे सिर्फ चारा प्रजाति का पौधा माना जाने लगा है।